मानव शरीर के लिए भोजन(आहार) अत्यधिक महत्वपूर्ण है।किंतु क्या आहार खाएं, कब खाएं, किस प्रकार खाएं और किन परिस्थितियों में आहार का सेवन करें यह सभी आहार संबंधी तथ्यों को सदैव ध्यान रखना चाहिये।
1. स्निग्ध भोजन
पथ्य आहार में तेल आदि से बने भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। उचित मात्रा में नियमित तेल आदि के प्रयोग से हृदय, मोटापा और अन्य विकार कम होते हैं, क्योंकि जठराग्नि की तीव्रता आपके आहार को सुगमता से पचा
देती है और सही पाचन से सही ऊर्जा आपके शरीर को बलशाली और स्वस्थ रखती है। इस प्रकार के पदार्थों का सेवन त्रिदोष का भी नाश भी करता है।
पथ्य आहार में तेल आदि से बने भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। उचित मात्रा में नियमित तेल आदि के प्रयोग से हृदय, मोटापा और अन्य विकार कम होते हैं, क्योंकि जठराग्नि की तीव्रता आपके आहार को सुगमता से पचा
देती है और सही पाचन से सही ऊर्जा आपके शरीर को बलशाली और स्वस्थ रखती है। इस प्रकार के पदार्थों का सेवन त्रिदोष का भी नाश भी करता है।
2. गर्म और ताजा आहार
सदैव ताजा और गर्म आहार का सेवन हीं करना चाहिए क्योंकि ताजा आहार और औषधि हितकारी होती है वह शीघ्रता से पच जाता है फ्रिज आदि में रखा सामान्य बासी भोजन अनेक रोगों की उत्पत्ति को न्योता देने के समान है।सदैव प्राकृतिक अन्न, गर्म भोजन इत्यादि से बने पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते हैं।

3. शरीर की स्थिति
भोजन सेवन ही ऐसी प्रक्रिया है, जब इसे शांत चित्त और प्रसन्नता के साथ ग्रहण किया जाता है। भोजन से पूर्व व्यक्ति को अपने हाथ और पैरों को अच्छे से धोना चाहिए। भोजन जल्दी में, गुस्से में डर, अनिच्छा के साथ नहीं करना चाहिए। इस प्रकार से आहार सेवन शरीर को क्षति पहुंचा सकता है क्योंकि बिना प्रसन्नता और मौन शक्ति के भोजन में क्या और कितना खाना है, का ध्यान नहीं रह जाता है, जो शरीर को नुकसान दे सकता है।
सदैव ताजा और गर्म आहार का सेवन हीं करना चाहिए क्योंकि ताजा आहार और औषधि हितकारी होती है वह शीघ्रता से पच जाता है फ्रिज आदि में रखा सामान्य बासी भोजन अनेक रोगों की उत्पत्ति को न्योता देने के समान है।सदैव प्राकृतिक अन्न, गर्म भोजन इत्यादि से बने पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते हैं।

3. शरीर की स्थिति
भोजन सेवन ही ऐसी प्रक्रिया है, जब इसे शांत चित्त और प्रसन्नता के साथ ग्रहण किया जाता है। भोजन से पूर्व व्यक्ति को अपने हाथ और पैरों को अच्छे से धोना चाहिए। भोजन जल्दी में, गुस्से में डर, अनिच्छा के साथ नहीं करना चाहिए। इस प्रकार से आहार सेवन शरीर को क्षति पहुंचा सकता है क्योंकि बिना प्रसन्नता और मौन शक्ति के भोजन में क्या और कितना खाना है, का ध्यान नहीं रह जाता है, जो शरीर को नुकसान दे सकता है।
4. आहार मात्रा
शरीर को पूर्ण रूप से संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है हर व्यक्ति की आवश्यकताएं अलग अलग होती है किसी प्रवृति के व्यक्ति को किसी पोषक तत्व की आवश्यकता अधिक है किसी को कम। यह आहार मात्रा व्यक्ति को अपनी प्रवृत्ति जठराग्नि की स्थित पोषक तत्वों की आवश्यकता के अनुसार चयनित करनी चाहिए।

5. आहार समय
व्यक्ति को समय अनुसार ही भोजन करना चाहिए यह स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। आहार सेवन को नियत समय पर होने से उसे किसी प्रकार के रोग नहीं होते हैं। भोजन सदैव भूख लगने पर ही करना चाहिए। जब पहले किए गए भोजन पेट में पच गया हो, किसी प्रकार का दर्द या भारीपन नहीं होना चाहिए।
शरीर को पूर्ण रूप से संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है हर व्यक्ति की आवश्यकताएं अलग अलग होती है किसी प्रवृति के व्यक्ति को किसी पोषक तत्व की आवश्यकता अधिक है किसी को कम। यह आहार मात्रा व्यक्ति को अपनी प्रवृत्ति जठराग्नि की स्थित पोषक तत्वों की आवश्यकता के अनुसार चयनित करनी चाहिए।

5. आहार समय
व्यक्ति को समय अनुसार ही भोजन करना चाहिए यह स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। आहार सेवन को नियत समय पर होने से उसे किसी प्रकार के रोग नहीं होते हैं। भोजन सदैव भूख लगने पर ही करना चाहिए। जब पहले किए गए भोजन पेट में पच गया हो, किसी प्रकार का दर्द या भारीपन नहीं होना चाहिए।
समय पर भोजन ना करने से शरीर में कमजोरी दर्द थकावट इत्यादि विकार उत्पन्न हो जाते हैं इस प्रकार पथ्य और नियमित आहार सेवन करने से व्यक्ति रोग ग्रस्त नहीं होता है यदि हो जाए तो स्थिति के अनुसार परहेज करना चाहिए यदि व्यक्ति रोगी है और औषधि का सेवन कर रहा है किंतु संतुलित काऔर असंतुलित भोजन का ध्यान नहीं रखता है तो वह कभी स्वस्थ नहीं हो सकता।
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