यदि मनुष्य में क्षमा करने का गुण होता है तो उसको दुश्मन ही नहीं होंगे। और उसे अपनी सुरक्षा की भी कोई जरूरत नहीं होगी। क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। गुस्से के होने पर व्यक्ति को दूसरे शत्रु की क्या आवश्यकता ?
सगे संबंधी, बंधु बांधव आग के समान कष्टदायक और जलाने वाले होते हैं अतः सगे संबंधी होने पर अग्नि से भी डरने की जरूरत नहीं होती। आपने अक्सर देखा होगा कि जो हमारे अपने होते है उनका व्यवहार हमारे प्रति अलग होता है। कभी कभी हमारे अपने ही, मन मुटाव के कारण पराये हो जाते हैं। जो जो बात बात पर लड़ते झगड़ते हैं। वह इस तरह हमारे दिल को जलाते हैं, की उनके होते हुए हमें जला कर राख कर देने वाली अग्नि से भी डरने की जरूरत नही है।
सगे संबंधी, बंधु बांधव आग के समान कष्टदायक और जलाने वाले होते हैं अतः सगे संबंधी होने पर अग्नि से भी डरने की जरूरत नहीं होती। आपने अक्सर देखा होगा कि जो हमारे अपने होते है उनका व्यवहार हमारे प्रति अलग होता है। कभी कभी हमारे अपने ही, मन मुटाव के कारण पराये हो जाते हैं। जो जो बात बात पर लड़ते झगड़ते हैं। वह इस तरह हमारे दिल को जलाते हैं, की उनके होते हुए हमें जला कर राख कर देने वाली अग्नि से भी डरने की जरूरत नही है।

इसी तरह जो सच्चे मित्र होते हैं वह सबसे बड़ी दवाइयों का काम करते हैं सच्चा और अच्छा चाहने वाला मित्र के होने पर प्रभावशाली औषधियों की भी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वह हमें अच्छे से समझता है और हमें दुःख की परिस्थितियों में संभाल लेता है, परेशानियों से बाहर निकल लेता है।

दुष्ट लोग सांप से भी अधिक दुख पहुंचाने वाले होते हैं क्योंकि सांप तो एक बार काटता है और मृत्यु हो ही जाती है। लेकिन जो दुष्ट लोग होते हैं, बार-बार हमें दुख पहुंचाते हैं, कष्ट पहुंचाते हैं, काटते रहते हैं- इस प्रकार दुष्टों के होने पर सांपों से भी डरने की आवश्यकता नहीं है।
दुष्ट लोग सांप से भी अधिक दुख पहुंचाने वाले होते हैं क्योंकि सांप तो एक बार काटता है और मृत्यु हो ही जाती है। लेकिन जो दुष्ट लोग होते हैं, बार-बार हमें दुख पहुंचाते हैं, कष्ट पहुंचाते हैं, काटते रहते हैं- इस प्रकार दुष्टों के होने पर सांपों से भी डरने की आवश्यकता नहीं है।

लज्जा या शर्म ही मनुष्य का सबसे बड़ा गुण, सर्वश्रेष्ठ आभूषण होता है। लज्जा शील मनुष्य को आभूषणों या गहनों की कोई जरूरत नहीं होती। शर्म ही उसका गहना है।
लज्जा या शर्म ही मनुष्य का सबसे बड़ा गुण, सर्वश्रेष्ठ आभूषण होता है। लज्जा शील मनुष्य को आभूषणों या गहनों की कोई जरूरत नहीं होती। शर्म ही उसका गहना है।
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