मनुष्य अपने स्वभाव या nature के अनुसार किसी भी वस्तु को प्राप्त करके उसे पुरी तरह संतुष्टि प्राप्त कर लेता है महान व्यक्ति श्रेष्ठ वस्तु को प्राप्त के किए बिना satisfied नहीं होता लेकिन नीच व्यक्ति तुच्छ वस्तु से ही असीम संतोष को प्राप्त कर लेता है जैसे कुत्ते का उदाहरण देकर समझते हैं कि
कुत्ता कीड़े लगे हुए, लार से गीली, दुर्गंधमय, घृणा जनक हड्डी को चाटता रहता है। उसे बड़ा संतोष मिलता है उस समय यदि भगवान भी उसके सामने आ जाए तो उसे किसी प्रकार की शर्म या लज्जा अनुभव नहीं होगी। क्योंकि यह सत्य है कि नीच व्यक्ति को अपनी तुच्छ वस्तु होते हुए भी कुछ नहीं लगती। अपने द्वारा प्राप्त वस्तु को ही सर्व श्रेष्ठ समझता है। और उसे कभी छोड़ता नहीं है।
इसी प्रकार नीच व्यक्ति भी अपराध कार्य करने से बिल्कुल भी नहीं चूकता और घृणित कार्य करने से भी उसे बिल्कुल भी शर्म का अनुभव नहीं होता है। लज्जाहीन व्यक्ति किसी की भी शर्म नही करता। फिर चाहे वह कोई भी क्यों न हो!
कुत्ता कीड़े लगे हुए, लार से गीली, दुर्गंधमय, घृणा जनक हड्डी को चाटता रहता है। उसे बड़ा संतोष मिलता है उस समय यदि भगवान भी उसके सामने आ जाए तो उसे किसी प्रकार की शर्म या लज्जा अनुभव नहीं होगी। क्योंकि यह सत्य है कि नीच व्यक्ति को अपनी तुच्छ वस्तु होते हुए भी कुछ नहीं लगती। अपने द्वारा प्राप्त वस्तु को ही सर्व श्रेष्ठ समझता है। और उसे कभी छोड़ता नहीं है।
इसी प्रकार नीच व्यक्ति भी अपराध कार्य करने से बिल्कुल भी नहीं चूकता और घृणित कार्य करने से भी उसे बिल्कुल भी शर्म का अनुभव नहीं होता है। लज्जाहीन व्यक्ति किसी की भी शर्म नही करता। फिर चाहे वह कोई भी क्यों न हो!
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